Saturday, April 12, 2025
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क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड (सीएयू) में फिर शह-मात का खेल, उपाध्यक्ष धीरज भंडारी की सदस्यता निरस्त

देहरादून। क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड (सीएयू) के पदाधिकारियों के बीच चल रहा शह और मात का खेल लगातार जारी है। पदाधिकारी एक-दूसरे खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप और शिकायतों को लेकर अक्सर चर्चाओं में रहते हैं। ताजा मामला उपाध्यक्ष धीरज भंडारी से जुड़ा है, जिनकी सदस्यता निरस्त कर दी गई है। धीरज एसोसिएशन पदाधिकारियों के खिलाफ पुलिस समेत कई स्तरों पर शिकायत कर गंभीर आरोप लगा चुके हैं।

सीएयू की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, 8 अप्रैल को जारी अपने आदेश में क्रिकेट एसोसिएशन आफ उत्तराखंड के ओंबड्समैन एंड एथिक्स ऑफिसर ने धीरज भंडारी की सदस्यता निरस्त कर दी है। अपने आदेश में उन्होंने कहा कि धीरज भंडारी के द्वारा क्रिकेट एसोसिएशन के खिलाफ कई गतिविधियों को गंभीर किस्म का माना गया है। धीरज भंडारी पिछले लंबे समय से क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के गोपनीय दस्तावेजों को थर्ड पार्टी से लीक कर रहे थे। और लीगल नोटिस और पुलिस शिकायत आदि विभिन्न तरीकों से अपने ही संगठन के पदाधिकारियों की छवि को धूमिल करने में लगे थे।

संगठन के कई पदाधिकारियों ने इसकी शिकायत अपेक्स काउंसिल में की। अपेक्स काउंसिल ने इन शिकायतों को अंतिम निर्णय लेने के लिए ओंबड्समैन एंड एथिक्स ऑफिसर को भेज दिया था। ओंबड्समैन ने धीरज भंडारी के पद के दुरुपयोग, कदाचार और गोपनीय जानकारी को थर्ड पार्टी से शेयर करने सहित अपने ही पदाधिकारियों की छवि खराब करने की शिकायतों को काफी गंभीर माना और उनकी सदस्यता निरस्त कर दी। हालांकि धीरज भंडारी क्रिकेट एसोसिएशन आफ उत्तराखंड की नई सदस्य के रूप में फिर से आवेदन करने के लिए स्वतंत्र है।

कई पदाधिकारियों ने की धीरज भंडारी की शिकायत

क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ उत्तराखंड के कानूनी सलाहकार व सीनियर एडवोकेट बीएस नेगी और सचिव महिम वर्मा ने भी धीरज भंडारी की शिकायत की। बीएस नेगी ने सीएयू को एक शिकायत दी, जिसमें कहा गया कि धीरज भंडारी ने उनको नीचा दिखाने और छवि खराब करने की दृष्टि से उनका पत्र लिखा, जबकि उनको इस बात का कोई अधिकार नहीं था कि वह लीगल ओपिनियन को चैलेंज कर सके। जबकि इस तरह की शिकायतों को सुनने के लिए क्रिकेट एसोसिएशन आफ उत्तराखंड की नियमावली में व्यवस्था अलग से दी गई है।

एक और शिकायत क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ उत्तराखंड के सेक्रेटरी माहिम वर्मा ने भी दर्ज की। उन्होंने कहा कि धीरज भंडारी ने बाहरी लोगों की भी विशेषज्ञ सलाह ली जबकि यह उनके अधिकारों का दुरुपयोग और गोपनीयता को भंग करने वाला था। माहिम वर्मा ने कहा कि उन्होंने दी गई जिम्मेदारियां और अधिकारों के बाहर जाकर पद का दुरुपयोग किया और अनुशासन तथा संगठन के नियमों को तोड़ा।

क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ उत्तराखंड के सचिव माहिम वर्मा ने अपने पत्र में कहा कि धीरज भंडारी ने फंड के दुरुपयोग तथा गैर जिम्मेदारी तथा भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए पुलिस स्टेशन में शिकायत की, जबकि इन शिकायतों का कोई आधार नहीं था। उन्होंने यह शिकायत ना तो अपेक्स काउंसिल के सामने रखी और न हीं ओंबड्समैन के पास गए जो कि क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ उत्तराखंड की कॉन्स्टिट्यूशन में लिखा है।

यदि अपेक्स काउंसिल नहीं सुनती तो ओंबड्समैन के पास शिकायत की जा सकती है, लेकिन इन सबको दरकिनार करके सीधे पुलिस स्टेशन में निराधार शिकायत करने के चलते संगठन की छवि खराब हुई है। अलग-अलग लोगों से कई तरह की शिकायतें मिलने के बाद अपेक्स काउंसिल ने धीरज भंडारी से उनका पक्ष जानना चाहा और उनको एक कारण बताओ नोटिस भेजा धीरज भंडारी का जवाब मिलने के बाद अंतिम निर्णय के लिए पूरे मामले को ओंबड्समैन के पास रखा गया। ओंबड्समैन ने धीरज भंडारी को भी इस विषय पर नोटिस जारी किया उनकी ओर से काउंसिल चित्रांजलि नेगी ने उनकी ओर से पैरवी की।

उन्होंने अनुशासनहीनता और कदाचार के आरोपों से इनकार किया और कहा कि यह शिकायत उनकी छवि को धूमिल करने के लिए की गई है।  उन्होंने शिकायत को निराधार बताते ही कहा कि ऐसा कोई भी काम धीरज भंडारी ने नहीं किया है जिससे क्रिकेट एसोसिएशन आफ उत्तराखंड की छवि और क्रिकेट को नुकसान पहुंचता हो। क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ उत्तराखंड के उपाध्यक्ष धीरज भंडारी के खिलाफ ओंबड्समैन और एथिक्स ऑफिसर को अपेक्स काउंसिल के द्वारा रेफर की गयी शिकायत मिली थी।

अपेक्स काउंसिल को धीरज भंडारी के खिलाफ काफी सारी शिकायतें मिली थी जो क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ उत्तराखंड के कई सदस्यों के द्वारा की गई थी। 8 दिसंबर 2024 को काउंसिल ने इस संबंध में एक मीटिंग बुलाई और धीरज भंडारी से कारण बताओ नोटिस भेज कर जवाब मांगा। धीरज भंडारी द्वारा जवाब मिलने के बाद काउंसिल ने ओंबड्समैन को सारा मामला संदर्भित कर दिया।

संगठन के कई पदाधिकारी थे परेशान

दो शिकायतें क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ़ उत्तराखंड के अध्यक्ष गिरीश गोयल और कोषाध्यक्ष मानस मेंघवाल ने की थी। इनको धीरज भंडारी ने छवि खराब करने की कोशिश में कानूनी नोटिस भेजा था। अपेक्स काउंसिल ने यह शिकायतें भी ओंबड्समैन को रेफर कर दी।  एक और शिकायत संगठन के सीईओ मोहित अग्रवाल ने भी धीरज भंडारी के खिलाफ की। इन्हें भी धीरज भंडारी ने एक लीगल नोटिस भेजा था और अनर्गल आरोप लगाए थे, ताकि छवि खराब हो सके। हालांकि धीरज भंडारी ने कहा कि सीएयू तथा कानूनी सलाहकार सभी को कानूनी नोटिस क्रिकेट एसोसिएशन के हित में में भेजे गए थे।

ओंबड्समैन ने अपने फैसले में कहा कि शिकायतकर्ता धीरज भंडारी संगठन का पदाधिकारी भी है और इस नाते उनकी नियम कायदों की पालन की जिम्मेदारी अधिक बनती है लेकिन इसके बजाय उन्होंने अपने सहयोगी पदाधिकारियों को भी नोटिस भेज दिए और उनसे बाहरी थर्ड पार्टी ओपिनियन लेने के लिए दस्तावेज मांग लिए इससे कोई भी विवाद हल होने के बजाय पदाधिकारियों की छवि खराब हुई, जबकि क्रिकेट एसोसिएशन के कॉन्स्टिट्यूशन में साफ लिखा है कि इसके लिए पहले से ही उपयुक्त माध्यम और मंच उपलब्ध हैं, इसके बजाय उनका पालन नहीं किया गया। बिना किसी आंतरिक जांच और तथ्य के पुलिस में और अन्य जगहों पर क्रिकेट एसोसिएशन पर अनियमितता के आरोप लगाए गये, जिससे संगठन और उनके पदाधिकारियों की छवि खराब हुई। यह अपने आप में गंभीर कदाचार का मामला है।

इससे बिना किसी आधार के क्रिकेट एसोसिएशन और उनके अधिकारियों की छवि जनता में विवादित हुई धीरज भंडारी द्वारा भेजे गए कई नोटिस और अन्यत्र शिकायतों के कारण संगठन के अन्य पदाधिकारयों के बीच में अविश्वास भी उत्पन्न हुआ और आपस में सहयोग की भावना को भी चोट पहुंची।

धीरज भंडारी के कृत्य से न सिर्फ क्रिकेट एसोसिएशन आफ उत्तराखंड के नियम कानून को धता बताई गई, बल्कि अनुशासनात्मक नियामक पर भी सवाल उठाए गए। सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर ओंबड्समैन ने पाया कि क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष धीरज भंडारी ने अपने दायित्व का पालन करने के बजाय संगठन के नियम कानून को तोड़ा और संगठन की गोपनीय और व्यक्तिगत जानकारी को भी खुर्द बुर्द किया।

ओंबड्समैन में धीरज भंडारी के इस कृत्य को भी काफी गंभीरता से लिया, जिसमें उन्होंने संगठन के वित्तीय दस्तावेजों को थर्ड पार्टी एक्सपर्ट को उनकी ओपिनियन के लिए दिया और उसके लिए संगठन के अधिकारियों से कोई स्वीकृति नहीं ली। धीरज भंडारी ने संगठन के सदस्यों की आपस के व्यवहार और उनकी छवि को भी खतरे में डाला जिससे उन्होंने धीरज को कदाचार का दोषी पाया। इन सब तथ्यों को देखते हुए जस्टिस एमएन भंडारी (पूर्व चीफ जस्टिस) ने धीरज भंडारी की संगठन की सदस्यता निरस्त कर दी।

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